हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार,आयतुल्लाहिल उज़मा सुब्हानी ने अपने दरस ए अख़्लाक़ के दरस में हसद के घातक प्रभावों पर रौशनी डालते हुए कहा कि हसद केवल एक नैतिक बीमारी नहीं है बल्कि यह इंसान के ईमान को खा जाने वाला गुनाह है।
उन्होंने हसद की परिभाषा करते हुए कहा,हसद का मतलब है कि इंसान यह चाहे कि दूसरे के पास जो नेमत है वह खत्म हो जाए भले ही वह खुद उस नेमत को पाने की इच्छा न रखता हो। यह एक खतरनाक रवैया है जो अल्लाह की तक़सीम और उसके फैसलों पर आपत्ति करने के बराबर है।
आयतुल्लाह सुब्हानी ने इमाम जाफर सादिक अ.स. की हदीस का हवाला देते हुए कहा,जिस तरह आग सूखी लकड़ी को जलाकर राख कर देती है, उसी तरह हसद ईमान को नष्ट कर देता है।
उन्होंने आगे कहा,मोमिन के दिल में हसद के लिए जगह नहीं है क्योंकि मोमिन अल्लाह की तक़सीम पर राज़ी होता है और दूसरों की नेमतों को देखकर खुशी महसूस करता है।
आयतुल्लाह सुब्हानी ने पैग़ंबरों के इतिहास से हसद के नुकसान की मिसालें दीं उन्होंने कहा, ज़मीन पर पहला गुनाह हसद की वजह से हुआ था।
हज़रत आदम अ.स. के बेटे काबील ने अपने भाई हाबील को हसद के कारण मार डाला। इसी तरह हज़रत यूसुफ अ.स. के भाइयों ने हसद की वजह से उनके खिलाफ साजिश की और उन्हें कुएं में फेंक दिया। यहां तक कि रसूलुल्लाह (पैग़ंबर मुहम्मद स.) के दौर में भी कुछ लोगों ने हसद के कारण नुबूवत को मानने से इनकार कर दिया क्योंकि वे चाहते थे कि यह ओहदा उन्हें मिले।
आयतुल्लाह सुबहानी ने इस बात पर जोर दिया कि हसद ऐसा गुनाह है जो इंसान को अल्लाह से दूर कर देता है। उन्होंने हज़रत मूसा अ.स. की एक हदीस का जिक्र करते हुए कहा,अल्लाह ने हज़रत मूसा अ.स. से कहा,जो कुछ मैंने अपने बंदों को दिया है उस पर हसद मत करो क्योंकि हसद करने वाला मेरे फैसले पर आपत्ति करता है।
उन्होंने बताया कि हसद इंसान के दिल में नफरत और क़ीना पैदा करता है जो न केवल व्यक्तिगत जीवनबल्कि सामाजिक संबंधों को भी बर्बाद कर देता है।
आयतुल्लाह सुबहानी ने कहा कि हसद ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति से समाज तक फैल सकती है। अगर लोग हसद से मुक्त हो जाएं, तो समाज अधिक मजबूत, शांतिपूर्ण और प्रेमपूर्ण बन सकता है।
आखिर में उन्होंने कहा,हसद और ईमान एक ही दिल में जमा नहीं हो सकते मोमिन का फर्ज़ है कि वह अल्लाह की तक़सीम पर राज़ी रहे और दूसरों की नेमतों को देखकर अल्लाह का शुक्र अदा करे। हसद इंसान को अल्लाह की रहमत और बरकत से दूर कर देता है इसलिए इस गुनाह से बचना बेहद ज़रूरी है।